क्यूँ रखूं अब अपने कलम में स्याही
जब कोई अरमान दिल में मचलता ही नहीं!
ना जाने क्यूँ सभी शक करते है मुझ पर,
जब कोई सुखा फूल मेरी किताब में मिलता ही नहीं|
कशिश तो बहुत है मेरे प्यार में मगर क्या करूँ,
एक पत्थर दिल है की पिघलता ही नहीं|
अगर खुदा मिले तो उससे अपना प्यार मांगूं,
पर सुना है वो मरने से पहले मिलता ही नहीं|
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